चार साल से नहीं आई प्राथमिक शिक्षक भर्ती, प्रशिक्षु सड़क पर उतरे: जबकि पद भी हैं रिक्त

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63,261 पद रिक्त होना सदन में स्वीकार कर चुके हैं बेसिक शिक्षा मंत्री 

परिषदीय विद्यालयों में शिक्षक भर्ती के लिए प्रशिक्षु अभ्यर्थी चार वर्ष से नई भर्ती आने की प्रतीक्षा कर मंत्री रहे हैं। इसके लिए प्रयागराज से लखनऊ तक आंदोलन भी किए लेकिन नतीजा सिफर रहा। सरकार छात्र- शिक्षक अनुपात का आकलन करने के लिए कमेटी गठित कर मौन हो गई। रिपोर्ट का अब तक पता नहीं चला और अभ्यर्थी इस रिपोर्ट के आधार पर भर्ती आने की आस लगाए बैठे हैं। यह तब है जब बेसिक शिक्षा मंत्री सदन में स्वीकार कर चुके हैं कि ग्रामीण और नगर क्षेत्र को मिलाकर 63000 से ज्यादा पद रिक्त हैं।

बेसिक शिक्षकों की 69000 पदों पर भर्ती 2018 में आई थी। इस भर्ती के लिए डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजूकेशन (डीएलएड) प्रशिक्षण अनिवार्य है। डीएलएड प्रशिक्षण के लिए प्रदेश में 66 जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) सहित तीन हजार से अधिक निजी प्रशिक्षण संस्थान हैं। इन संस्थानों में वर्तमान में 2.16 लाख से ज्यादा सीटें हैं, जिन पर प्रवेश लेकर छात्र-छात्राएं दो वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं।

इस प्रशिक्षण के बाद उनमें उम्मीद रहती है कि बेसिक शिक्षा में शिक्षक भर्ती आने पर उसमें चयन होने पर शिक्षक बन सकते हैं, लेकिन 2018 के बाद प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले करीब पांच लाख से ज्यादा अभ्यर्थियों की यह उम्मीद सपना रह गई है, इसके अलावा इसके पूर्व में प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थियों में भी बड़ी संख्या ऐसी है, जिन्हें नई भर्ती आने की प्रतीक्षा है। शिक्षक भर्ती के लिए संघर्ष कर रहे राजेश चौधरी का कहना है कि पहली योगी सरकार में शिक्षक भर्ती की मांग की गई। 2018 के बाद कोई शिक्षक भर्ती नहीं आई, जिससे प्रशिक्षण प्राप्त कर छात्र- छात्राएं बेरोजगार हैं। यह मामला सदन में उठा तो बेसिक शिक्षा मंत्री ने जवाब में बताया कि प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में अध्यापकों के 5,80,084 पद सृजित हैं तथा वर्तमान में सीधी भर्ती के ग्रामीण क्षेत्र में 51,112 तथा नगर क्षेत्र में 12, 149 पद रिक्त हैं।

इधर, नई भर्ती नहीं आने से डीएलएड संस्थानों में प्रवेश की स्थिति भी डांवाडोल हो चली है। प्रदेश भर के संस्थानों में जितनी सीटें स्वीकृत हैं, उन्हें भरना भी मुश्किल हो रहा है। कई बार तिथि बढ़ाने के बाद भी सीटें कई वर्षों से भरी नहीं जा सकी हैं। इस बार भी करीब आधी सीटें रिक्त रह गई हैं। इसका दुष्परिणाम यह है कि तीन दर्जन से ज्यादा डीएलएड प्रशिक्षण संस्थान मान्यता लौटाने के लिए उप्र परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय को आवेदन दे चुके हैं, जिनमें से दो दर्जन संस्थानों की मान्यता समाप्त की जा चुकी है.