वित्त मंत्रालय ने गुरुवार को कहा एनपीएस (नई पेंशन प्रणाली) की समीक्षा के लिए गठित समिति फिलहाल सभी पक्षकारों से सलाह-मशविरा कर रही है और अभी तक उसने अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप नहीं दिया है। सरकार ने अप्रैल में सरकारी कर्मचारियों के लिए एक जनवरी, 2004 के बाद शुरू की गई पेंशन योजना की समीक्षा के लिए वित्त सचिव टीवी सोमनाथन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। समिति राजकोषीय स्थिति और बजट पर इसके पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के साथ एनपीएस में संशोधन के उपाय सुझाएगी। सोमनाथन की अध्यक्षता वाली समिति में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सचिव, व्यय विभाग के विशेष सचिव और पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के चेयरमैन और सदस्य शामिल हैं।
कई गैर भाजपा शासित राज्यों ने पुरानी पेंशन पर लौटने का फैसला किया है और कुछ अन्य राज्यों में कर्मचारी संगठन लगातार इसकी मांग उठा रहे हैं। राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकारों ने केंद्र को पुरानी पेंशन योजना पर वापस लौटने के अपने फैसले के बारे में सूचित कर दिया है और एनपीएस के तहत जमा हुई धनराशि को वापस करने का अनुरोध किया है। वित्त मंत्रालय संसद को पहले ही बता चुका है कि वह एक जनवरी, 2004 के बाद भर्ती हुए केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन प्रणाली (ओपीएस) की बहाली के किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रहा है। ओपीएस के तहत सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को उनके अंतिम आहरित वेतन 50 का प्रतिशत मासिक पेंशन के रूप में मिलता था। महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी के साथ समय-समय पर पेंशन की राशि बढ़ती जाती है। ओपीएस सरकार के ऊपर एक बोझ की तरह है, क्योंकि इसमें कर्मचारियों का किसी तरह का अंशदान शामिल नहीं होता है और इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता है.
एनपीएस को 1 जनवरी, 2004 या उसके बाद केंद्र सरकार में शामिल होने वाले सशस्त्र बलों के कर्मचारियों को छोड़कर सभी के लिए लागू किया गया है। अधिकांश राज्य / केंद्र शासित प्रदेश सरकारों ने भी अपने नए कर्मचारियों के लिए एनपीएस को अधिसूचित किया है। पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण के अनुसार, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल को छोड़कर 26 राज्य कर्मचारियों के लिए एनपीएस को अधिसूचित कर चुके हैं।