ये स्कूल मर्जर या स्कूल बंदी ?

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स्कूल मर्जर या स्कूल बंदी ? 

इस पेच में फँसे हुए हैं शिक्षक लेकिन हक़ीक़त ये है कि मर्जर के नाम पर स्कूलों को बंद किया जा रहा है जिसको आप महराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा में देख सकते हैं और उत्तर प्रदेश में इसकी तैयारी चल रही है। 

एक मस्त शब्द आपको दिया गया “आत्मनिर्भर भारत” लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि New Education Policy में दो शब्द self reilant और self aided बहुत उपयोग में लाए गए हैं जो कि मुख्यतः उच्च शिक्षा या उच्च शिक्षण संस्थानों में उपयोग में लाए जा रहे हैं लेकिन इसके पीछे की हक़ीक़त ये है कि लगातार शिक्षा का बजट घटाया जा रहा है केंद्र में इस वर्ष 2.50 % रखा है GDP का जबकि पिछली सरकार में यही बजट लगभग चार फ़ीसदी को पार करता था । ये जो शब्द आए हैं self reliant और self aided ये सब उसी की बानगी है कि आने वाले समय में केवल ऊँचा तबक़ा फ़ीस भरेगा या कुछ लोग loan लेकर उच्च शिक्षा को प्राप्त करेंगे बाक़ी बनेंगे आत्म निर्भर। 

लेकिन बुनियादी शिक्षा जिसके लिए मुख्यतः मा० सर्वोच्च न्यायालय की रूलिंग बनी है Unni Krishnan, J.P. & oths. Vs State of AP में कि किसी भी प्रकार से आप सरकारी शिक्षण संस्थानों को बंद नही कर सकते हैं और साथ ही ठोस कोई क़दम लेना होगा बुनियादी शिक्षा हेतु क्योंकि पहले बुनियादी शिक्षा अनुच्छेद 46 में थी जो कि नीति निर्देश (DPSP) में थी जिसके बाद उसको अनुच्छेद 21के तहत मौलिक अधिकारों में जोड़ा गया था तो उसके लिए इन्होंने NEP का सहारा लिया है और साथ ही सपने ऐसे दिखाए हैं कि बुनियादी शिक्षा के लिए अब हम आंगनबाड़ी में भी पढ़ाई चालू करवाएँगे और वहाँ भी बिना किसी ठोस रूलिंग के outsourcing लगाकर शिक्षक रख रहे हैं। शिक्षक को उलझाकर रखा हुआ पहले छात्र का प्रवेश पाँच वर्ष की आयु में था लेकिन अब ऐसे करके ये विद्यालयों में बच्चों को लाने ही नही दे रहे हैं। 

स्वयं सोचिए जो चीज़ ऐक्ट में PTR के आधार पर है तो क्या आप केवल लोभ लालच या मजबूरी से उसको बदल देंगे? ऐसा नही होने दिया जाएगा क्योंकि ये चाहते नही कि ग़रीब, किसान, मज़दूर या मध्यम वर्ग का बच्चा पढ़े । इनका एक मात्र लक्ष्य है कि धर्म शस्त्र कांवड मंदिर में इन्हें लगाए रखो और इनके स्वयं के बच्चे oxford आदि में जाएँ। जिसके पास थोड़ा कुछ है वो बच्चों को बाहर भेज ही रहा है बाक़ी यहाँ तो जाति धर्म ने सब बर्बाद ही कर दिया है। कुछ भी हक़ माँगो तो कोई न कोई चीज़ आपको दे ही देंगे इसी को कहते हैं DISTRACTION from the aim। 

जनता भी भांग के नशे में है जिसकी सोचने समझने की शक्ति राशन ने ख़त्म कर दी है। आँकलन कीजिए थोड़ा सा एक ग़रीब परिवार है उसको मज़दूरी नही मिली दे दिया राशन क्योंकि मनरेगा का भी बजट ख़त्म कर दिया है, पढ़ाई के लिए जो DBT आ रही है उससे कुछ ही परिवार ही बच्चों का ख़याल रख रहे हैं बाक़ी तो आपको पता ही है किसी की जेब में आप पैसा देकर उससे अपने मुताबिक़ कैसे ख़र्च करवा सकते हैं? ख़ून में हरामखोरी भर दी है और आपकी तुलना हमेशा पाकिस्तान से करवाएँगे कभी भी scandinavian nations से नही। 

सोचना आपको हमें ही है भविष्य अधर में कर रहे हैं विद्यालय बंद उसके बाद पचास से ऊपर के retire समायोजन के नाम पर आपको जिले में घुमाते रहेंगे न ट्रांसफ़र न पदोन्नत्ति और फिर कह देंगे ये सब कामचोर हैं जबकि शासन प्रशासन का छोटे से छूट काम प्राइमरी का शिक्षक ही करता है। 

सोचिए समझिये इस शक्ति को कम से कम शिक्षक न खोएँ 

#rana