रिपोर्ट : नौनिहालों की पढ़ाई पर मानकों से कम खर्च, तीन से छह साल के छह करोड़ बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा पर जीडीपी का सिर्फ 0.1 फीसदी खर्च कर रही केंद्र सरकार

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नई दिल्ली । केंद्र और राज्यों की सरकारें तीन से छह साल के करीब छह करोड़ बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा पर जीडीपी का सिर्फ 0.1 फीसदी खर्च कर रही हैं। हर बच्चे की पढ़ाई पर सालाना 8297 रुपये खर्च हो रहा है जो मानकों की तुलना में सिर्फ एक चौथाई है। सेंटर फॉर बजट एंड गर्वनेंस एकाउंटेबिलिटी (सीबीजीए) और सेव द चिल्ड्रेन की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।

केंद्र और राज्य सरकारों ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में जीडीपी का 0.1 हिस्सा छोटे बच्चों की पढ़ाई पर खर्च किया था जो देश के कुल बजट का सिर्फ 0.39 है। देशभर में तीन से छह साल के 32 फीसदी यानी करीब 3.14 करोड़ बच्चे आंगनबाड़ी केंद्रों में प्रारंभिक शिक्षा का लाभ ले रहे हैं।

प्रारंभिक शिक्षा अहम क्यों

यूनिसेफ के अनुसार, इस उम्र में ही बच्चों के 85 मस्तिष्क का विकास होता है, जो जीवनभर उनके सीखने व समझने का जरिया बनता है। एनईपी-2020 के अनुसार, तीन से छह वर्ष की उम्र के 10.7 बच्चे ही आवाज के साथ तस्वीर को पहचान पाते हैं। 17.5 फीसदी बच्चे अपनी समझ के अनुसार चित्र के ड्रॉइंग पैटर्न को बनाते हैं।

सुधार के लिए बच्चों का ध्यान

केंद्र ने 2022-23 में बच्चों के लिए बजट में कुल 92,736.5 करोड़ आवंटित किए थे। पिछले बजट में ये राशि 85,712.56 करोड़ थी। 17,826.03 करोड़ आंगनबाड़ी केंद्रों को आवंटित हुए थे। बच्चों को शिक्षित करने को पीएम-ईविद्या के तहत 200 टीवी चैनल खोलने की घोषणा हुई थी।

पांच की उम्र में पहली कक्षा में दाखिला

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने 2020 में जारी सार्थक रिपोर्ट में बताया था पांच से छह साल के सिर्फ 27बच्चे ही आंगनबाड़ी केंद्रों तक पहुंच पाते हैं। यही नहीं देश के 21 राज्यों में पांच साल के बच्चों को पहली कक्षा में ही दाखिला मिल जाता है। नतीजा यह है कि इस उम्र के बच्चों में पढ़ने-लिखने और कुछ नया सीखने का दबाव कम उम्र में ही बन जाता है।

जीडीपी का 2.2 फीसदी हिस्सा हो खर्च

रिपोर्ट के अनुसार, बचे हुए 62 फीसदी बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा को मंजबूत बनाने के लिए जीडीपी का 1.6 से 2.2 फीसदी हिस्सा खर्च करना पड़ेगा। सीबीजीए के मुताबिक, प्रारंभिक शिक्षा और उससे जुड़ी सेवा के लिए एक बच्चे पर सालाना औसतन 32,532 रुपये से लेकर 56,327 रुपये खर्च होना चाहिए। मगर अभी भारत में सालाना 8297 रुपये खर्च हो रहे हैं।