नई दिल्ली, । गरीब सवर्णों के आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने कायम रखा है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सोमवार को बहुमत के आधार पर आर्थिक रूप से कमजोर (ईडब्ल्यूएस) लोगों को नौकरी और शिक्षा में 10 आरक्षण देने के सरकार के फैसले पर मुहर लगा दी। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने आरक्षण के पक्ष में फैसला सुनाया। वहीं, मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट ने इस आरक्षण से अपनी असहमति जताते हुए इसे असंवैधानिक ठहराया।
मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, बेला एम त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला ने बहुमत के फैसले में कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। उन्होंने यह भी माना कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों कोआरक्षण देना किसी मानक को प्रभावित नहीं करता।
दो जज असहमत जस्टिस रवींद्र भट ने कहा, गरीबों को आरक्षण देना गलत नहीं है लेकिन पिछड़े लोगों को इससे वंचित रखना ठीक नहीं होगा। उन्होंने कहा कि 50 की सीमा के उल्लंघन की अनुमति देने से विभाजन होगा। जस्टिस भट की राय से जस्टिस यूयू ललित ने सहमति जताई।
आरक्षण खत्म हो
यह सामाजिक, आर्थिक असमानता खत्म करने के लिए है। लेकिन आरक्षण अनंतकाल तक नहीं रहना चाहिए।
-न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला
103वां संशोधन संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन है। संवैधानिक रूप से निषिद्ध भेदभाव को बढ़ावा देता है। ये समानता पर आघात है।
-न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट
इसे आर्थिक रूप से कमजोर तबके को मदद पहुंचाने के तौर पर देखना चाहिए। इसे अनुचित नहीं कह सकते।
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी
मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने जस्टिस भट के फैसले पर सहमति जताई।
असर कुल आरक्षण 50 से अधिक