रायबरेली: सब पढ़े-सब बढ़े का नारा देकर भारत सरकार की तरफ से सर्व शिक्षा अभियान की शुरूआत की गई थी गांव-गांव विद्यालय खोलकर सरकार का उददेष्य गांवों में बेहतर पिक्षा देने का था उसका फयदा यह हुआ कि गांवों में कोई बच्चा निरक्षर नहीं रहा। सबसे अधिक फायदा कोरोना काल में गांव के हर वर्ग के बच्चों को हुआ, जब सबके सामने बच्चों को पढ़ाने की मुसीबत थी,
उस समय हर वर्ग के बच्चों का सहारा परिषदीय विद्यालय हो बने। कोरोना काल में प्रवासियों के साथ ही साथ प्राइवेट विद्यालयों में भी पढ़ने वाले बच्चों ने प्रवेष कराया और उसकी वजह से परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की संख्या बढ़ गई। परिषदीय स्कूलों में बच्चों को बढ़ी संख्या इस बार गुरुजी के लिए मुसीबत बना हुआ है। जब प्रवासी मजदूर गांवों से फिर रोजी-रोटी की तलाष में शहर चले गए और एक बार फिर से प्राइवेट विद्यालय खुल गए है। इसकी वजह है। से इस बार गांवों में पिक्षकों को बच्चे खोजे नहीं मिल रहे हैं और सरकार की तरफसे हर विद्यालय के लिए पिछले साल हुए नामांकन से 22 प्रतिषत अधिक नामांकन कराने का लक्ष्य दिया गया है। अब इस बार सरकार की तरफ से दिया गया लक्ष्य अध्यापकों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। शिक्षक अपने विद्यालय की सीमा में आने वाले गांवों में बच्चों को खोज रहे हैं, लेकिन गांवों में बच्चों के न होने की वजह से पिछले साल हुए नामांकन के बराबर भी इस बार संख्या नहीं पहुंच पा रहे हैं। विद्यालयों में बच्चे नहीं बढ़ रहे लेकिन सरकार और अधिकारी अपना कागजी घोड़ा दौड़ा रहे हैं। अब गुरूजी परेशान है आखिर क्या बच्चे मंगल ग्रह से लेकर आएंगे।
साहेब का आदेश है बच्चे बढ़ाएं
रायबरेली उत्तर प्रदेष सरकार एक बार फिर से परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की संख्या बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। इस बार 30 सितम्बर 2021 को हुए कुल नामांकन का 22 प्रतिषत बढ़ाकर लक्ष्य दिया गया है। सरकार की तरफ लक्ष्य दिए जाने के बाद अब बीएसए की तरफ से कागजी कार्रवाई लगातार की जा रही है। नामांकन का लक्ष्य न पूरा करने बाले अध्यापकों का वेतन भी रोकने की बात बीएसए की तरफ से किया जा रहा है। ऐसे में अब पिक्षक बहुत परेषान है कि आखिर बच्चे कहां से लेकर आएं।
प्रवासियों ने छोड़ गांव, गुरूजी परेशान
कोरोनाकाल की वजह से शहर में रहने वाले मजदूर गांव आ गए थे। उनके गांव आने की वजह से एकाएक परिषदीय विद्यालयों में संख्या बढ़ गई। अब कोरोनाकाल की स्थिति बेहतर होने की वजह से गांवों से मजदूर शहर फिर से प्रवास कर गए हैं, उनके साथ में बच्चे भी शहर प्रवास कर गए है। इसकी वजह से गांवों में बच्चों की संख्या कम हो गई है और पिक्षक नामांकन बढ़ाने के लिए परेशान हैं।