इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वित्तपोषित माध्यमिक विद्यालयों में तदर्थ शिक्षकों के रिक्त पदों को पिछले भर्ती विज्ञापन में समाहित करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि याची के पास ऐसा कोई विधिक अधिकार नहीं है, जिसके तहत न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को रिक्त पदों को विज्ञापित करने का निर्देश दिया जा सके। यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने दिया है। शीतला प्रसाद ओझा की ओर से याचिका में प्रदेश के विभिन्न एडेड इंटर कॉलेजों में कार्यरत तदर्थ सहायक अध्यापक एवं प्रवक्ता के पदों को रिक्त घोषित कर पिछले भर्ती विज्ञापन में शामिल करने की मांग की गई थी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में संजय सिंह केस में प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा विभाग को तदर्थ शिक्षकों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अगली भर्ती में अनुभव के आधार पर भारांक देने की व्यवस्था की थी। जिसके बाद तदर्थ शिक्षकों ने भर्ती प्रक्रिया में भाग भी लिया था। जिसमें अधिकतर प्रतिभागी असफल रहे। फिर राज्य सरकार ने भर्ती में असफल रहे तदर्थ शिक्षकों को सेवा मुक्त नहीं किया। उन्हीं तदर्थ शिक्षकों के पदों को रिक्त घोषित कर पिछले विज्ञापन में शामिल कराने के लिए याचिका की गई थी। याची की ओर से अशोक कुमार बनाम बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड के मामले में सुप्रीम कोर्ट के के निर्णय का हवाला देते हुए कहा गया कि याची उच्च शिक्षित बेरोजगार व्यक्ति है। उक्त रिक्त पदों के लिए आवश्यक योग्यताएं भी रखता है। जिन पदों पर तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति है, उन पदों पर उसके नियुक्त होने की भी संभावना है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि याची तदर्थ शिक्षकों द्वारा धारित रिक्त पदों को विज्ञापन में समाहित न करने से होने वाली व्यक्तिगत क्षति को दर्शाने में असमर्थ रहा है। जबकि उसने 2022 के शिक्षक भर्ती विज्ञापन के सापेक्ष आवेदन भी किया है। न्यायालय ने कहा कि अशोक कुमार केस भर्ती के नतीजों के बाद प्रतीक्षासूची में रखे गए अभ्यर्थियों से संबंधित था। कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 के तहत नागरिकों को प्रत्येक भर्ती में समान अवसर प्रदान करना सुनिश्चित किया गया है लेकिन संवैधानिक अधिकारों को एक सीमा तक ही विस्तारित किया जा सकता है। याची उक्त निर्णय के आधार पर राज्य सरकार से रिक्त पदों को विज्ञापन में शामिल करने की मांग नहीं कर सकता।