सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि चैरिटेबल संस्थानों-एनजीओ, सोसायटी या ट्रस्ट तभी आयकर में छूट का लाभ ले सकते हैं, जब उनका एकमात्र कार्य शिक्षा देना ही हो। साथ ही वे कोई और गतिविधि नहीं कर रहे हों। यह भी देखना होगा कि इन संस्थानों का उद्देश्य लाभ कमाना भी न हो।
आयकर की धारा 10 (23 सी) की व्याख्या करने से जहां चैरिटेबल संस्थानों की गतिविधियों को नए सिरे से परिभाषित करने की आवश्यकता पैदा हो गई है, वहीं इससे सरकार को टैक्स का भारी कलेक्शन होने की संभावना है, क्योंकि ऐसे संस्थान जो शिक्षा के साथ अन्य गतिविधियों में लगे हैं उन्हें आयकर से छूट नहीं ले सकेंगे। कोर्ट ने कहा है कि यह फैसला आगामी तारीख से प्रभावी होगा, जो संस्थान छूट का लाभ पहले ले चुके हैं, लेकिन अगले वित्त वर्ष से उनका मूल्यांकन होगा।
लाभ लेने पर छूट नहीं
तीन जजों की पीठ ने फैसले में कहा कि सभी ट्रस्ट, सोसायटी आदि को शिक्षण कार्य में ही लगा होना चाहिए, लेकिन यदि ये संस्थान लाभ अर्जित करने के लिए काम करते दिख रहे हैं तो ऐसे संस्थानों को टैक्स छूट की मंजूरी नहीं मिलेगी।
बाइलॉज बदलना पड़ेगा
कोर्ट के इस फैसले से सैकड़ों संस्थानों को अपने दस्तावेजों जैसे मेमोरेंडम आफ एसोसिएशन और बाइलॉज को बदलना पड़ेगा, क्योंकि कोर्ट ने कहा है कि है उन्हें यह दिखाना होगा कि वे शिक्षण संस्थानों का कार्य ही करते हैं और अन्य गतिविधियां नहीं करते।