इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रदेश में तीन वर्ष से बनकर तैयार स्कूलों में अध्यापक तथा स्टॉफ की नियुक्ति न करना जनता के पैसे की बर्बादी है। कोर्ट ने कहा, निर्माण की गुणवत्ता सभी को पता है। जब स्कूल चालू होगा तब तक बनकर तैयार नए स्कूल भवनों की मरम्मत की जरूरत पड़ जाएगी।
कोर्ट में हाजिर माध्यमिक शिक्षा के प्रमुख सचिव दीपक कुमार की ओर से अधूरी जानकारी के साथ दाखिल हलफनामे पर नाराजगी जताई। कहा, यह स्पष्ट किया जाय कि केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री जन विकास योजना से बने 26 स्कूल केवल अल्पसंख्यकों या सभी के लिए हैं। केंद्र सरकार के अधिवक्ता से पूछा, केंद्र सरकार के पैसे से स्कूल बने हैं तो उसे उनकी देखरेख की निगरानी भी करनी चाहिए। देखें कि जिस उद्देश्य से पैसा दिया गया, वह पूरा भी हुआ या नहीं।
कोर्ट ने राज्य सरकार से केंद्र सरकार से मिले धन के खर्च के व्योरे सहित काम की स्थिति की जानकारी के साथ हलफनामा भी मांगा है। याचिका की सुनवाई चार जनवरी को होगी। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने अनंत कुमार पांडेय की जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।
कोर्ट ने समय दिए जाने के बावजूद सरकार की ओर से जवाब दाखिल न होने पर प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा को तलब किया था। कोर्ट को बताया गया कि स्कूलों के भवन बनकर तैयार हैं किंतु अध्यापक स्टाफ न होने के कारण कार्य नहीं कर रहे हैं। यह अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के माध्यम से बनाए जा रहे हैं। कोर्ट ने पूरी योजना की जानकारी मांगी है।