प्रयागराज । प्रमोशन की चाहत किसे नहीं होती। इसे बेहतर काम और तरक्की की सीढ़ी माना गया है लेकिन कुछ सरकारी विभाग ऐसे भी हैं जहां कर्मचारी पदोन्नति लेना ही नहीं चाहते। इनमें बाबू से लेकर अफसर तक शामिल हैं। विभाग उन्हें पदोन्नति देकर आगे बढ़ाना चाहता है लेकिन वे प्रमोशन को अपने नफा- नुकसान के तराजू पर तौलकर फॉर-गो यानि पदोन्नति नहीं चाहिए बोल दे रहे हैं। कई तो प्रमोशन की सूची जारी होने के बाद नया कार्यभार तक ग्रहण नहीं कर रहे,
इससे अजीब हालात पैदा हो रहे हैं। यह देखते हुए अब लोक निर्माण विभाग में सर्कुलर जारी कर कई हिदायतें दी गई हैं।
हासिये पर होंगे ऐसे कर्मचारी: लोक निर्माण विभाग के 67 कर्मचारियों ने पदोन्नति लेने से इनकार कर दिया। ऐसे में प्रदेश के कई जिलों के अहम पदों पर ट्रांसफर-पोस्टिंग भी फंसने लगी। इसके बाद विभाग ने निर्देश जारी किया कि ऐसे कर्मचारी जो प्रमोशन से इनकार करें उनसे हर हाल में शपथ पत्र लिया जाए। पदोन्नति से मना करने वालों से लिखित लिया जाए कि वह आगे कभी पदोन्नति की मांग नहीं करेंगे। इतना ही नहीं ऐसे सरकारी सेवक को संवेदनशील, महत्वपूर्ण पदों पर कतई उन बैठाया जाए। ऐसे कर्मचारियों की सूची तैयार कर रिकॉर्ड में रखें और ध्यान दें कि उनके नाम आगे किसी पदोन्नति पात्रता सूची में शामिल न हों। प्रमोशन छोड़ने को लेकर पहले शासन से सख्त निर्देश जारी हुए। इसके बाद विभाग ने हिदायतें दी हैं। विभागीय अफसर खुद मान रहे हैं कि अब हालात जुदा हैं। पहले प्रमोशन न मिलने पर अदालत तक मामले ले जाए जाते थे, अब पदोन्नति छोड़ना आम हो गया है।
लाभ वाले काम और खास कुर्सी, ट्रांसफर का डर
पदोन्नति से इनकार अपने फायदे के आधार पर किया जा रहा है। इसमें कार्यों का बंटवारा भी अहम है। कुछ ऐसे पद हैं जहां लाभ को संज्ञान में रखकर कर्मचारी प्रमोशन से भागता है ताकि वह मनचाही कुर्सी पर ही जमा रहे। इसी तरह पटल परिवर्तन हो जाने से भी कर्मचारी पीछे हट जाते हैं। प्रमोशन के बाद स्थानांतरण की तलवार भी लटकने लगती है। ऐसा भी होता कर्मचारी उस ग्रेड पर पहले ही पहुंच चुका होता है। ऐसे में वेतनमान में बहुत फर्क न होने के हालात में भी वह प्रमोशन से किनारा कर लेता है।