उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की ओर से अपर निजी सचिव (एपीएस) भर्ती-2010 के तहत चयनित 221 एपीएस के स्थायीकरण पर मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव ने सचिवालय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव से रिपोर्ट मांगी है। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर शिकायत की थी कि सचिवालय प्रशासन विभाग के कुछ अधिकारियों ने घोटाले से चयनित एपीएस से मिलीभगत कर मुख्य सचिव की बैठक में गलत और भ्रामक तथ्य प्रस्तुत कर स्थायीकरण कराने का निर्णय करा लिया है।
अवनीश का कहना है कि 221 में से अधिकांश के चयन में फर्जीवाड़ा और धांधली की गई है। सीबीआई ने प्रारंभिक जांच में पाया है कि भर्ती में घोटाला करके चयन किया गया। सीबीआई इस मामले में एफआईआर दर्ज कर विवेचना कर रही है। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमे में राज्य सरकार ने अमेंडेड काउंटर एफिडेविट दाखिल कर स्वीकार किया है कि लोक सेवा आयोग ने संगत सेवा नियमावली के प्रावधानों का उल्लंघन करके यह भर्ती संपन्न कराई है। इतना ही नहीं महाधिवक्ता ने राज्य सरकार को परामर्श दिया है कि 2010 की भर्ती में चयनित एपीएस का स्थायीकरण शासन स्तर से न किया जाए। बकौल अवनीश इस सबके बावजूद इनके स्थायीकरण का फैसला लिया जाना अवैधानिक एवं सीबीआई जांच को प्रभावित करने की साजिश है।
सीएम को लिखे पत्र में अवनीश ने इन बातों को ध्यान में रखते हुए स्थायीकरण के निर्णय को निरस्त कर इसमें संलिप्त अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी। अवनीश के पत्र का संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद ने सचिवालय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव से एक सप्ताह में मूल पत्रावली पर आख्या (रिपोर्ट) प्रस्तुत करने को कहा है।
विदित हो कि 2010 में एपीएस के 250 पद थे। चार चरणों की परीक्षा के बाद तीन अक्टूबर 2017 को 249 अभ्यर्थियों को चयनित किया गया था। अप्रैल से जून 2018 के बीच अभ्यर्थियों को कार्यभार ग्रहण कराया गया। भर्ती में अनियमितता मिलने पर सरकार ने चार सितंबर 2018 को इसकी जांच सीबीआई को सौंपी थी। 30 नवंबर 2018 को ज्वाइन करने से रह गए 26 अभ्यर्थियों की ज्वाइनिंग पर सीबीआई जांच पूरी होने तक रोक दी गई थी। वहीं, दो चयनित अभ्यर्थी नौकरी छोड़कर चले गए। वर्तमान में 221 चयनित अभ्यर्थी उत्तर प्रदेश सचिवालय में कार्यरत हैं।