बच्चों को मोबाइल फोन थमा कर व्यस्त रहने वाले अभिभावक बच्चों को गंभीर बीमारी की और ढकेल रहे हैं। पारिवारिक व सामाजिक माहौल से दर ये बच्चे बोलना ही नहीं सीख पा रहे। कोशिश करने पर उनके मुंह से “म, ए, ऐं ऊ” जैसी आवाज ही निकल पा रही। इसके चलते उन्हें इशारों से काम चलाना पड़ रहा है। चिकित्सा विज्ञान की भाषा में वर्चुअल आटिज्म (आभासी आत्मकेंद्रित ) से पीड़ित ऐसे बच्चों का अच्छे स्कूलों में प्रवेश भी नहीं हो पा रहा। यह चिंताजनक तस्वीर गोरखपुर के सेंट एंड्रयूज
कालेज में पर हुए अध्ययन में सामने आई है। जिला अस्पताल में मानसिक रोग विभाग के डा. अमित कुमार शाही ने बताया कि वर्चुअल आटिज्म से बचाव का एक मात्र रास्ता बच्चों के साथ समय बिताना है। मोबाइल की लत छुड़ाने के लिए बच्चों को दूसरे कामों में व्यस्त करना होगा। अभिभावकों को स्वयं उस काम को करना होगा। बच्चा उसे देखकर सीख पाएगा.
60 प्रतिशत बच्चे साफ बोलने में नाकाम
सेंट एंड्रयूज कालेज की मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डा. श्वेता जानसन ने जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग संग मिलकर जनवरी 2023 में इस पर काम शुरू किया। ऐसे लक्षण वाले बच्चों की सूची उन्हें जिला अस्पताल और स्कूलों से मिली। इसमें वह बच्चे शामिल थे जिनका मोबाइल पर प्रतिदिन औसत स्क्रीन टाइम दो से तीन घंटे रहा। ओपीडी में चिकित्सकों की राय लेने के साथ उन्होंने बच्चों व अभिभावकों से भी बात की
350 बच्चों पर हुए अध्ययन में 210 से अधिक ऐसे बच्चे मिले जो कुछ भी साफ नहीं बोल पा रहे थे। 100 से अधिक बच्चों में डिले स्पीच (आवाज देर से निकलना या हकलाना) की समस्या थी। इनका दिमाग तो चल रहा, लेकिन जुबान पर भाषा के रूप में परिवर्तित नहीं हो पा रहा था। 30 ऐसे भी मिले जो कहने पर कुछ समझ नहीं पा रहे थे। उनसे पेंसिल उठाने को कहा गया, लेकिन वह उठा नहीं सके। कुछ बच्चे ऐसे भी मिले जो खाना खाने के समय मोबाइल न देखें तो उन्हें खिलाया नहीं जा सकता.
वर्चुअल आटिज्म के लक्षण
मोबाइल फोन या किसी चीज को एकटक देखते रहना
स्पष्ट आवाज निकलने की बजाय हकला कर बोलना
मोबाइल छीनने पर रोना या फिर आक्रामक हो जाना
एक ही खिलौने से खेलना या एक जगह पकड़े रहना
बच्चों के इस स्थिति में पहुंचने के लिए अभिभावक और घर का माहौल जिम्मेदार • है। बच्चों के बोलने, रिश्तों को समझने व संवेदनशील होने की ह उम्र मोबाइल में बीत रही है। ऐसे बच्चों की आंख मस्तिष्क तो काम कर रहा है, लेकिन मुंह बंद रह जा रहा है। लिखने-पढ़ने में दिक्कत होगी। डा. श्वेता जानसन, मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष, सेंट एंड्रयूज कालेज, गोरखपुर