शिक्षा मंत्रालय की स्कूली बच्चों के भारी बस्ते और इसके प्रभाव पर आई रिपोर्ट चिंतित करने वाली है। इस रिपोर्ट के अनुसार बस्ते का बढ़ता बोझ बच्चों को बीमार कर रहा है। भारी-भरकम बस्ते के कारण 77 फीसदी से अधिक बच्चे कमर और गर्दन संबंधी रोगों के शिकार हो रहे हैं।
शिक्षा मंत्रालय ने बिहार समेत देशभर के स्कूलों के बच्चों और अभिभावकों से बस्ते और उसके असर पर लिए गए फीडबैक के आधार पर रिपोर्ट तैयार की है। 85 से अधिक बच्चों ने कहा कि वे बस्ते का वजन कम करना चाहते हैं। अभिभावकों ने बताया कि बस्ते के कुल भार का 78 से अधिक मोटी किताबों, नोटबुक और रिफरेंस बुक का होता है। पानी की बोतल, लंच बॉक्स, पेंसिल बॉक्स, कलर बॉक्स और स्कूल द्वारा अनिवार्य की गई अन्य चीजें भी होती हैं। 58 अभिभावकों ने बताया कि वे अपने बच्चों से बस्ते के वजन को लेकर बात करते हैं। शिक्षा मंत्रालय और एनसीईआरटी ने देशभर के 2992 अभिभावकों और 3624 बच्चों से फीडबैक लिया। इसके बाद सीबीएसई ने 5200 अभिभावकों से काउंसिलिंग के दौरान बात की।
दो साल में 20 फीसदी बढ़ गया वजन
दो साल में बच्चों के बस्ते का वजन 20 फीसदी से अधिक बढ़ा है। ऐसा किताबों से लेकर कॉपियों तक की संख्या और भार बढ़ने से हुआ है। स्थिति यह है कि 15 किलो के बच्चे 7 से 8 किलो तक का बस्ता ढो रहे हैं।
कक्षा बच्चे का औसत वजन बस्ते का भार
1 10 से 16 किलो 2.5 से 3 किलो
2 16 से 22 किलो 4 से 5 किलो तक
3 17 से 25 किलो 7 किलो तक
5 17 से 30 किलो 8 किलो तक
एनसीईआरटी और बिहार शिक्षा परियोजना ने स्कूलों को बस्ते का बोझ कम करने के लिए तत्काल कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। सीबीएसई की काउंसिलिंग सेल मनोदर्पण के विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद कुमार ने बताया कि जल्द ही नई गाइडलाइन जारी की जाएगी। स्कूल संगठन सहोदय के सचिव सतीश कुमार झा कहते हैं कि कोशिश की जा रही है कि बच्चों के बस्ते का भार कम किया जाए।