परिसीमन हुए बिना महिला आरक्षण नहीं

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 2024 के ही लोकसभा चुनाव से महिला आरक्षण को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को आदेश देने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला आरक्षण कानून के उस प्रावधान को रद्द करना उसके लिए बहुत मुश्किल होगा जो कहता है कि अगली जनगणना के बाद होने वाले परिसीमन के बाद ही इसे लागू किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने 2024 के लोकसभा चुनाव से ही महिला आरक्षण को लागू करने की मांग को लेकर कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर की याचिका पर यह टिप्पणी की। पीठ ने याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया। याचिका में 128वें संविधान (संशोधन) विधेयक को तत्काल लागू करने की मांग की गई, जिसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम नाम दिया गया है। इस अधिनियम के तहत लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया है।

लंबित याचिका संग सुनवाई होगी शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मसले पर पहले से एक याचिका लंबित है। पीठ ने कहा कि 22 नवंबर को पहले से लंबित याचिका के साथ ही इस मामले की सुनवाई की जाएगी। पीठ ने याचिकाकर्ता ठाकुर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह की दलीलों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इन दलीलों में कहा गया था कि यह समझ में आता है कि पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने के लिए डाटा संग्रह के लिए जनगणना की आवश्यकता है, लेकिन आश्चर्य है कि महिला आरक्षण के मामले में जनगणना का सवाल कहां उठता है।

नोटिस देने से इनकार

अधिवक्ता सिंह ने याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने और याचिका को अन्य मामले के साथ सूचीबद्ध करने का आग्रह किया। पीठ ने नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह याचिका खारिज नहीं कर रहे, लेकिन इस पर कोई नोटिस भी जारी नहीं कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि वह सिर्फ इसे लंबित मामले के साथ टैग कर रही है।