राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने महत्वपूर्ण फैसले में माना है कि ‘यदि निर्माता कंपनी द्वारा किए गए वादे के मुताबिक आपका वाहन माइलेज नहीं दे रहा है तो यह निर्माण संबंधी यानी बनाने में कमी है।’ शीर्ष उपभोक्ता अदालत ने वाहन निर्माता कंपनी की अपील को खारिज करते हुए यह फैसला दिया है।
वाहन निर्माण कंपनी व अन्य ने राज्य उपभोक्ता आयोग और जिला उपभोक्ता आयोग के फैसले को कई आधारों पर चुनौती दी थी। आयोग के सदस्य डॉ. इंदरजीत सिंह ने राज्य उपभोक्ता आयोग और जिला उपभोक्ता आयोग के फैसले में दखल देने से इनकार करते हुए कहा कि इसमें किसी तरह की कोई खामी नहीं है, ऐसे में इसे बहाल रखा जाता है।
शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने वाहन बनाने वाली कंपनी की उन दलीलों को सिरे से ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया था कि शिकायकर्ता ऑटो चालक ने करीब साढ़े चार साल गाड़ी चलाने के बाद उपभोक्ता फोरम में माइलेज सही नहीं देने सहित कई कमियों के बारे में शिकायत की थी।
इसके अलावा कंपनी की ओर से यह भी दलील दी गई थी कि शिकायतकर्ता ने अपनी गाड़ी का रखरखाव सही से नहीं किया और नि:शुल्क सर्विस भी नहीं लिया। कंपनी ने यह दलील देते हुए राज्य उपभोक्ता आयोग व जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा पारित आदेशों को रद्द करने की मांग की। सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने राज्य उपभोक्ता आयोग के उस तर्क से सहमति जताई है, जिसमें कहा गया कि कंपनी के वादे के मुताबिक माइलेज नहीं देना, विनिर्माण में कमी है।
यह है मामला
केरल निवासी रविंद्रन ने सितंबर 2006 में फोर्स मोटर लिमिटेड से एक लाख 68 हजार रुपये में एक ऑटो खरीदा था। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2011 में जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दाखिल कर आरोप लगाया उसका ऑटो कंपनी द्वारा किए गए वादे के मुताबिक माइलेज नहीं दे रहा है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि 2006 मॉडल ऑटोरिक्शा का 35 किलोमीटर प्रति लीटर का माइलेज देने का वादा किया था, लेकिन माइलेज इससे काफी कम दे रहा है। उन्होंने कहा था कि गाड़ी काफी अधिक ईंधन खपत कर रहा है। शिकायत में यह भी आरोप लगाया था कि कंपनी का अधिकृत डीलर कई प्रयास के बाद भी खामी को दूर नहीं कर पाया और वारंटी अवधि के दौरान ही वाहन अनुपयोगी हो गया