करदाताओं के पास डिफॉल्ट नई कर व्यवस्था से बाहर निकलकर पुरानी व्यवस्था चुनने के लिए 30 अप्रैल तक का समय है। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो नई व्यवस्था के तहत लागू कर स्लैब के अनुसार वेतनभोगी व्यक्तियों के लिए टीडीएस काटा जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि करदाताओं को दोनों कर व्यवस्था की अच्छी तरह तुलना करनी चाहिए और जो उनके लिए सबसे अधिक फायदेमंद हो, उसका चुनाव करना चाहिए। उनका कहना है कि बजट 2023 में पेश किए गए बदलावों के बाद नई कर योजना कई करदाताओं के लिए अनुकूल हो सकती है। खासकर उनके लिए जो होम लोन या एचआरए पर मिलने वाली छूट का लाभ नहीं लेते हैं।
नई कर योजना बोझिल और ज्यादा झंझट वाली नहीं
कर विशेषज्ञों का कहना है कि नई कर योजना में किए गए प्रमुख बदलावों में वेतनभोगी व्यक्तियों के लिए 50 हजार रुपये की मानक कटौती और कम कर दरें शामिल हैं। सरकार ने इस योजना को इस तरह से संरचित किया है कि कर का भुगतान या तो कम हो या पुरानी योजना के बराबर हो, जब तक कि करदाता पर्याप्त कर कटौती और छूट का दावा नहीं कर रहा हो। 7.5 लाख रुपये तक की कुल आय वालों के लिए यह सबसे बेहतरीन विकल्प है, क्योंकि इसमें कई तरह के झंझट पूरी खत्म हो जाते हैं। करदाता को कर बचत के लिए अधिक निवेश योजनाएं बनाने की जरूरत नहीं पड़ती है।
पुरानी व्यवस्था का गणित
इसके उलट पुरानी कर व्यवस्था में करदाता को कर कटौती और कर छूट दावों के लिए कई तरह की निवेश योजनाओं में उलझना पड़ जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी करदाता की कुल सालाना आय 8 लाख रुपये है तो कर से बचने के लिए उसे 2.13 लाख से अधिक की कटौती और छूट का लाभ उठाना होगा। इसी तरह, 10 लाख की आय पर करदाता को 3 लाख रुपये की छूट का लाभ उठाने की आवश्यकता होगी। वहीं, 15 लाख रुपये से अधिक आय होने पर यह सीमा 4.25 लाख रुपये पहुंच जाती है। कर विशेषज्ञों के मुताबिक, केवल 50 हजार रुपये की मानक कटौती और धारा 80सी के तहत उपलब्ध 1.5 लाख रुपये की छूट के साथ कर बचाना संभव नहीं हो पाता है।
हर किसी के लिए अधिक बचत संभव नहीं
कर विशेषज्ञ कहते हैं कि सभी करदाताओं के लिए धारा-80 सी और 80सीसीडी के तहत अधिक बचत करना संभव नहीं हो पाता है। कुछ करदाता केवल पीपीएफ या स्वास्थ्य बीमा में किए गए निवेश से ही कर छूट का दावा कर पाते हैं। यह सीमा मानक कटौती को मिलाकर अधिकतम 2.25 लाख रुपये तक ही पहुंच सकती है। उच्च आय वाले करदाताओं के मामले में यह पर्याप्त नहीं है। ऐसे करदाता तभी कर बचा सकते हैं, जब ये होम लोन के ब्याज, शिक्षा ऋण या मकान किराए (एचआरए) के मद में कर छूट के लिए दावा करें।
होम लोन ब्याज और एचआरए में कर छूट
आयकर अधिनियम की धारा 24 के अनुसार, होम लोन के ब्याज पर दो लाख रुपये की कटौती का दावा किया जा सकता है। शिक्षा ऋण के मामले में एक वर्ष में भुगतान किए गए पूरे ब्याज पर धारा 80ई के तहत कटौती का दावा किया जा सकता है। वहीं, एचआरए का लाभ केवल वेतनभोगियों के लिए उपलब्ध है। बशर्ते यह उनके सीटीसी पैकेज का हिस्सा हो। सालाना एक लाख रुपये तक किराया देते हैं तो उसकी रसीद जमाकर कर छूट का दावा कर सकते हैं लेकिन अगर सालाना किराया एक लाख से ज्यादा है तो आयकर छूट पाने के लिए मकान मालिक का पैन नंबर देना होगा। व्यवसाय के मालिक, पेशेवर या वेतनभोगी लोग जिनके वेतन पैकेज के हिस्से के रूप में एचआरए नहीं है, वे धारा 80जीजी के तहत किराए पर अधिकतम 60 हजार रुपये तक की कटौती का दावा कर सकते हैं।
एचआरए और होम लोन छूट का दावा एक साथ संभव
अधिकांश लोगों को लगता है कि वे एचआरए या फिर होम लोन के पुनर्भुगतान में से
किसी एक पर ही आयकर कटौती का दावा कर सकते हैं। लेकिन हकीकत यह है इन
दोनों कटौतियों के लिए एक साथ दावा किया जा सकता है। आयकर कानून में इसके
लिए प्रावधान हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, बहुत से लोगों के पास एक शहर में अपना घर होता है लेकिन दूसरी जरूरतों के चलते वे दूसरे शहर में किराए पर रहते हैं। ऐसे लोग
एचआरए व होम लोन पुनर्भुगतान, दोनों के लिए कर छूट का दावा कर सकते हैं।
वेतनभोगी हर साल बदल सकते हैं कर व्यवस्था
विशेषज्ञों के अनुसार, वेतनभोगी व्यक्तियों के पास प्रत्येक वर्ष कर व्यवस्था को अपनी सुविधानुसार बदलने का विकल्प होता है। यदि कोई करदाता होम लोन या शिक्षा ऋण लेता है या अधिक एचआरए के तहत कर छूट पाना चाहता है तो नई से निकलकर वापस पुरानी कर व्यवस्था का विकल्प चुन सकता है। यह काम वित्त वर्ष की शुरुआत में या आईटीआर भरते समय किया जा सकता है। वहीं, व्यावसायिक आय वाले करदाता केवल एक बार ही कर व्यवस्था में बदलाव कर सकते हैं।