सोती हुई शिक्षा व्यवस्था की तस्वीर देखनी हो तो राजकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कुंवरपट्टी पर गौर करें। ग्यारह वर्षों में यहां 12 छात्राओं का ही नामांकन हो पाया। जबकि विद्यालय में प्रधानाचार्य समेत छह शिक्षक हैं। इस सत्र में कुछ जोर लगाया गया तो बच्चों की संख्या 60 तक पहुंच गई है.
बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2008 में मेजा के कुंवरपट्टी में राजकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय स्थापित करने को मंजूरी मिली थी। चार साल तो बजट, जमीन और कागजी प्रक्रिया में गुजर गए। वर्ष 2012 में विद्यालय बनकर तैयार हुआ। इसी सत्र से नौवीं और दसवीं की पढ़ाई शुरू हो गई। लेकिन यह महज औपचारिकता थी।
लड़कियों को स्कूल तक लाने के लिए कोई प्रयास नहीं हुए। वहीं, पड़ोस के जेएलएन इंटर कॉलेज जेवनिया में 547 और शुक्लपुर इंटर कॉलेज शुक्लपुर में करीब 700 बच्चे पढ़ते हैं। इनमें छात्र-छात्राएं दोनों शामिल हैं।
विद्यालय सिस्टम में असमानता की नजीर भी पेश करता है। एक तरफ जहां प्रदेश के सैकड़ों विद्यालयों में शिक्षकों का टोटा है। वहीं यहां बीते सत्र तक बच्चों से ज्यादा शिक्षक रहे। सरकार करीब साढ़े चार लाख रुपये इन शिक्षकों की तनख्वाह पर खर्च करती है। लेकिन शिक्षा विभाग से आज तक इनसे कोई पूछने नहीं गया कि ये करते क्या हैं।
उम्मीद जगी है…
विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. जय सिंह बताते हैं कि हाल ही उनकी यहां पर नियुक्ति हुई है। उनके आने से पहले स्कूल में बच्चों का नामांकन न के बराबर था। उन्होंने शिक्षकों की मदद से अगल-बगल के गांवों में जाकर बच्चों को स्कूल में नामांकन के लिए जागरूक किया। अब बालकों को भी प्रवेश दिया जा रहा है। इस सत्र में 26 बालक और 34 बालिकाओं को मिलाकर कुल 60 बच्चे हैं। बच्चों की संख्या बढ़ाने का प्रयास जारी है।
खेत से होकर स्कूल पहुंचते हैं बच्चे
विद्यालय की स्थापना तो कर दी गई लेकिन आज तक मुख्य सड़क से स्कूल तक पहुंचने के लिए रास्ता नहीं बन सका। खेतों से होकर पहुंचना पड़ता है। प्रधानाचार्य डॉ. जय सिंह ने बताया कि रास्ते के लिए खंड विकास अधिकारी उरुवा से मिलकर समस्या बताई गई है। समस्या दूर करने का आश्वासन मिला है।
बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए निर्देशित किया गया है। लापरवाह शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। – पीएन सिंह जिला विद्यालय निरीक्षक प्रयागराज।