34 जिलों में एक भी टीचर सम्मान लायक नहीं मिला:यहां 60 हजार सरकारी विद्यालय, डेढ़ लाख शिक्षक; यूपी के 4 जिलों से नहीं आई एप्लिकेशन

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34 जिलों में एक भी टीचर सम्मान लायक नहीं मिला:यहां 60 हजार सरकारी विद्यालय, डेढ़ लाख शिक्षक; यूपी के 4 जिलों से नहीं आई एप्लिकेशन

यूपी सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन काम करने वाले 41 टीचर को शिक्षक दिवस पर सम्मानित किया। हर जिले से एक टीचर को सम्मानित किया जाना था, लेकिन 75 में से 34 जिले ऐसे थे, जहां एक भी ऐसा टीचर नहीं मिला, जिसे सम्मानित किया जा सके। यूं कहें कि इस पुरस्कार के मापदंड पर खरा उतरे। 4 जिलों से तो पुरस्कार के लिए किसी टीचर ने आवेदन ही नहीं किया।

जिन 34 जिलों को पुरस्कार नहीं मिले, उनमें 60 हजार से ज्यादा परिषदीय विद्यालय और करीब डेढ़ लाख टीचर हैं। 65 लाख से ज्यादा स्टूडेंट इन स्कूलों में पढ़ते हैं।

पुरस्कार के लिए गाइडलाइन क्या है? हर साल 5 सितंबर को बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों के शिक्षकों को राज्य अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। इसके लिए गाइडलाइन तय है। राज्य अध्यापक पुरस्कार के लिए शिक्षक को संबंधित बेसिक शिक्षा अधिकारी दफ्तर में ऑनलाइन आवेदन करना होता है। जिला स्तर पर गठित कमेटी हर जिले से दो से तीन नाम राज्यस्तरीय चयन समिति को भेजती है। समिति की संस्तुति पर टीचरों को सम्मानित किया जाता है। 

5 सदस्यीय कमेटी ने तय किए नाम पुरस्कार के लिए शासन ने स्कूल महानिदेशक कंचन वर्मा की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय समिति बनाई। इसमें बेसिक शिक्षा निदेशक प्रताप सिंह बघेल, NCERT के निदेशक, उप शिक्षा निदेशक (प्राइमरी) गणेश कुमार और लखनऊ यूनिवर्सिटी के शिक्षा शास्त्र विभाग की प्रोफेसर डॉ. अमिता बाजपेई को सदस्य बनाया गया। कमेटी ने अध्यापक पुरस्कार के दावेदारों का इंटरव्यू लिया। 5 दिन यह प्रक्रिया चली। 

71 जिलों से भेजे गए नाम, 41 को ही मिला पुरस्कार इस साल राज्य अध्यापक पुरस्कार के लिए 75 में से 71 जिलों की ओर से प्रस्ताव राज्य स्तरीय चयन समिति को भेजे गए। प्रदेश स्तरीय चयन समिति ने इसमें से भी केवल 41 जिलों में ही एक-एक टीचर को पुरस्कार के लिए पात्र माना। 

प्रदेश में सबसे ज्यादा बजट, सबसे ज्यादा मानव संपदा और सबसे ज्यादा छात्र संख्या वाले बेसिक शिक्षा विभाग में 34 जिलों में एक-एक टीचर भी अध्यापक पुरस्कार के लिए पात्र नहीं मिला।

तीन आकांक्षी जिलों में भी पात्र नहीं प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास की दृष्टि से चित्रकूट, फतेहपुर, बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, चंदौली और सोनभद्र को आकांक्षी जिलों में शामिल किया गया है। इन जिलों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण सहित अन्य मानकों पर सुधार कार्य बीते 6 साल से चल रहे हैं।

सोनभद्र, चंदौली, बहराइच, सिद्धार्थनगर और फतेहपुर के एक-एक टीचर को राज्य अध्यापक पुरस्कार मिला है। बलरामपुर, श्रावस्ती और चित्रकूट जिले से एक भी टीचर पुरस्कार के योग्य नहीं पाया गया।

शिक्षा विभाग के बजट पर नजर बेसिक शिक्षा विभाग यूपी का सबसे ज्यादा बजट वाला विभाग है। यूपी सरकार के बजट का 10 फीसदी से ज्यादा बजट केवल इसी विभाग का है। इस वित्तीय वर्ष में विभाग के लिए 66,726 करोड़ 83 लाख 54 हजार रुपए के बजट प्रावधान है। 1.34 लाख से अधिक परिषदीय स्कूलों में करीब 5.80 लाख शिक्षक और शिक्षामित्र कार्यरत हैं।

पुरस्कार के योग्य शिक्षकों का नहीं मिलना संकेत है कि उन जिलों में शिक्षा का स्तर क्या है? शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार और विद्यालयों के कायाकल्प के लिए वहां कितना काम हुआ? शिक्षा क्षेत्र में इसको लेकर चर्चा का दौर शुरू हो गया है।

हालांकि, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष दिनेश चंद्र शर्मा इस व्यवस्था पर ही सवाल खड़े करते हैं। कहते हैं- किसी योग्य शिक्षक को सम्मान या पुरस्कार के लिए आवेदन करना पड़े, यह व्यवस्था ही गलत है। शिक्षा अधिकारियों का दायित्व होना चाहिए कि वह अपने जिले में उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए खुद ही उनका नाम पुरस्कार के लिए भेजें। ऐसा नहीं है, शिक्षक पुरस्कार के योग्य नहीं हैं। लेकिन, वे आवेदन नहीं करते।

पूर्व अपर निदेशक बेसिक शिक्षा ललिता प्रदीप का कहना है- शिक्षक योग्य हैं, लेकिन प्रतिस्पर्धा ज्यादा है। राज्य अध्यापक पुरस्कार के लिए जो क्राइटेरिया बनाया गया है, वह अब एविडेंस बेस है। शिक्षक को अपना दावा पेश करने के साथ उससे जुड़े एविडेंस भी देने होते हैं। मेरा मानना है- कई बार ऐसा होता है कि शिक्षक के क्लेम से उनके एविडेंस मैच नहीं खाते।