सवा छह लाख मिडडे मील रसोइयों को छह माह से मानदेय नहीं मिला, इस बार भी इनकी दीपावली फीकी, अफसर बने बेपरवाह

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लखनऊ। दूसरों का पेट भरने वाले रसोइये खुद भूखमरी के शिकार हो रहे हैं। मिड डे मील वर्कर्स को पिछले छह माह से मानदेय नहीं मिला है। बेसिक शिक्षा विभाग से लेकर शासन स्तर तक इनके बकाये मानदेय के भुगतान को लेकर कोई सुगबुगाहट भी नहीं दिख रही। ऐसे में इस बार की दीपावली में इनके घरों में रोशन होना मुश्किल ही लग रहा है।

जानकारों का कहना है कि रसोइयों की इस स्थिति के लिए पूरी तरह से महकमे के अफसर जिम्मेदार हैं। कारण कई दशक से काम लिए जाने के बावजूद अब तक इनकी सेवा शर्तें या सेवा नियमावली तक नहीं बनाई गई। स्कूलों में इनसे भोजन पकाने के अलावा साफ-सफाई समेत कई अन्य कार्य भी कराए जा रहे हैं। रसोइयों को सरकार द्वारा तय किए गए न्यूनतम मजदूरी से भी काफी कम मात्र 2,000 रूपये मानदेय दिया जाता है। रसोइयों से साल में 11 महीने कार्य लिए जाते हैं लेकिन इन्हें मानदेय मात्र 10 माह का मिलता है। जानकारों का कहना है कि स्कूलों में 40 दिन की छुट्टियां (25 दिन गर्मी व 15 दिन जाड़े की) होती है। शिक्षा मित्र, अनुदेशक एवं रसोइये सभी संविदाकर्मी हैं। इनमें से शिक्षा मित्र एवं अनुदेशकों को 11 माह का मानदेय दिया जाता है जबकि रसोइयों को 10 महीने का मानदेय देते हैं।

पर्व-त्योहारों की कोई छुट्टी नहीं मिलती सरकार द्वारा महिलाओं से सीधे जुड़े त्योहार मसलन, हरियाली या कजरी तीज, कड़वा चौथ, जीवित पुत्रिका (ज्यूतिया), छठ आदि में विशेष छुट्टियां प्रदान की जाती हैं लेकिन रसोइये जिनमें 90 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं, को इन तीज-त्योहारों में कोई छुट्टी नहीं दी जाती। यह नहीं कोई आकस्मिक और बीमारी का इन्हें कोई भी अवकाश नही मिलता। इन्हें मध्यान्ह भोजन पकाने हर हाल में स्कूल आना पड़ता है।

कभी भी नौकरी से किए जाते हैं निकाल बाहर सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी से भी कम मानदेय पर काम करने वाले रसोइयों की नौकरी कभी भी किसी समय समाप्त कर दी जाती है।

कभी स्कूलों में छात्र संख्या में कमी आने का बहाना बनाकर या फिर किसी अपनो को रखने के लिए भी कर दिया जाता है निकाल बाहर।

दूर दराज के स्कूलों में सबसे खराब है इनकी स्थिति दूर दराज के स्कूलों में इनकी स्थिति और भी खराब है। धुंआ मुक्त प्रदेश में ये जुगाड़ की लकड़ी से खाना पकाने के लिए बाध्य किए जाते हैं। दूर दराज कुछ स्कूलों में गैस सिलेंडर है तो वह नुमाइश के समान भर है। करीब 99 फीसदी विद्यालयों में अग्निशमन की गाइडलाइन का कहीं कोई पालन नहीं किया जाता। खाना बनाने के साथ सफाई कर्मचारी से लेकर चपरासी तक के सारे काम करने पड़ते हैं।

छात्र संख्या के आधार पर तय होती है रसोइयों की संख्या सरकार ने 2019 में छात्र संख्या के आधार पर स्कूलों में रखे जाने वाले रसोइयों की संख्या तय की थी। उसके अनुसार इस प्रकार से रखे जाते हैं रसोइये।

11 माह काम लिया जाता हैं और मानदेय केवल दस महीने का ही मिलता है

● इनकी सेवा शर्तें या सेवा नियमावली नहीं बनाई गई

● इस बार भी इनकी दीपावली फीकी, अफसर बने बेपरवाह

ये कहते हैं शिक्षक संगठन

परिषदीय और अनुदानित विद्यालयों में कार्यरत रसोइयों को जो भी मानदेय दिया जा रहा है ,वह न्यूनतम मजदूरी से बहुत कम है। इतने अल्प मानदेय में घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। हर माह समय से इनको मानदेय मिल जाये ,ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए। निर्भय सिंह, उपाध्यक्ष, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ