मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका के जरिये इनकम टैक्स के मौजूदा प्रावधानों को चुनौती दी गई है। इसके लिए EWS का जिक्र किया गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार 8 लाख रुपये तक की इनकम वालों को गरीब मानती है। फिर उसे इतनी आय वालों से टैक्स नहीं लेना चाहिए। इस पर कोर्ट ने सरकार को नोटिस भेजा है।
मद्रास हाईकोर्ट ने सरकार को भेजा है नोटिस
याचिका में इनकम टैक्स के प्रावधान को चुनौती
8 लाख रुपये तक की इनकम पर एग्जेम्पशन की मांग
कोर्ट के नोटिस का जवाब कैसे देगी सरकार?
नई दिल्ली: इनकम टैक्स (Income Tax) के मसले पर केंद्र को एक पेचीदा सवाल का जवाब देना है। मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) की मदुरै बेंच ने इस पर जवाब मांगा है। कोर्ट में इस बाबत एक याचिका दाखिल की गई है। इसमें इनकम टैक्स वसूली के मौजूदा प्रावधान को चुनौती दी गई है। याचिका के अनुसार, इनकम टैक्स वसूली के लिए बेस इनकम 2.5 लाख रुपये है। जबकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को रिजर्वेशन के लिए सालाना इनकम सीमा 8 लाख रुपये रखी गई है। याचिकाकर्ता ने इस विसंगति पर सवाल उठाए हैं।
INCOME TAX EWS CERTIFICATE
याचिकाकर्ता ने 8 लाख रुपये तक के इनकम ग्रुप में आने वाले सभी लोगों टैक्स के दायरे से बाहर रखने के लिए कहा है। याचिकाकर्ता का लॉजिक काफी मजबूत है। ऐसा करके सरकार ने माना है कि 8 लाख रुपये तक की इनकम वाले परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है। ऐसे में सरकार भला ‘गरीब’ से टैक्स कैसे ले सकती है। पिछले कई बजट में सरकार ने इनकम टैक्स स्लैब के साथ छेड़छाड़ नहीं की है। यह और बात है कि इनकम टैक्स छूट की सीमा बढ़ाने की काफी समय से मांग हो रही है।
केंद्र के जवाब से यह भी साफ होगा कि इनकम टैक्स पर उसका आगे का रुख क्या रहने वाले है। केंद्रीय बजट (Budget 2022) पेश होने से कुछ महीने पहले यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इसका क्या जवाब देती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में 103वें संविधान संशोधन विधेयक की कानूनी वैधता को बनाए रखा था। इसमें ईडब्ल्यूएस को रिजर्वेशन का प्रावधान किया गया है। ईडब्ल्यूएस के लिए इनकम लिमिट 7,99,999 रुपये तक रखी गई है।
याचिकाकर्ता ने क्या सवाल उठाए हैं?
याचिकाकर्ता कुन्नूर सीनिवासन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने अपील की है कि इनकम टैक्स कानून के तहत बेसिक इनकम की जरूरत के प्रावधान को हटाया जाए। सीनिवासन किसान और डीएमके की एसेट प्रोटेक्शन काउंसिल के सदस्य हैं। अपनी याचिका में सीनिवासन ने कई बातें उठाई हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने ईडब्ल्यूएस परिवार के तौर पर इनकम क्राइटेरिया फिक्स किया है। इसके अंतर्गत 7,99,999 रुपये तक की इनकम वालों को रखा गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो इन्हें सरकार गरीब मान रही है। अगर ऐसा ही है तो सरकार को 7,99,999 रुपये तक की इनकम वालों से टैक्स नहीं लेना चाहिए। इसका कोई तुक नहीं बनता है।
केंद्र सरकार से मांगा गया है जवाब
जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस सत्य नारायण प्रसाद की बेंच ने सोमवार को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस केंद्रीय कानून के साथ कई मंत्रालयों को भेजा गया है। कोर्ट चार हफ्ते बाद अब मामले की सुनवाई करेगा।
याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकर ने इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन को क्लासिफाई करने के लिए कुछ पैरामीटर बनाए हैं। इसे बनाने में ग्रॉस इनकम को मुख्य पैरामीटर बनाया गया है। यही पैमाना दूसरी जगह भी लागू होना चाहिए।
नई दिल्ली : 8 लाख रुपए सालाना से कम कमाने वाला शख्स गरीब है तो 2.5 लाख की आय पर ही टैक्स क्यों लगा दिया जाता है ? केंद्र को इस पेचीदा सवाल का जवाब देना है। मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने इस पर सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट में इस बाबत एक याचिका दाखिल की गई है। इसमें इनकम टैक्स वसूली के मौजूदा प्रावधान को चुनौती दी गई है। याचिका के अनुसार इनकम टैक्स वसूली के लिए बेस इंकम 2.5 लाख रुपए है जबकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को रिजर्वेशन के लिए वार्षिक आय सीमा 8 लाख रुपए रखी गई है।
याचिकाकर्ता ने इस विसंगति पर सवाल उठाए हैं। याचिकाकर्ता ने 8 लाख रुपए तक के इनकम ग्रुप में आने वाले सभी लोगों को टैक्स के दायरे से बाहर रखने के लिए कहा है। याचिकाकर्ता के मुताबिक सरकार ने माना है कि 8 लाख रुपए तक की इंकम वाले परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हैं। ऐसे में सरकार भला गरीब से टैक्स कैसे ले सकती है? पिछले कई बजटों में सरकार ने इनकम टैक्स स्लैब के साथ छेड़छाड़ नहीं की है। इनकम टैक्स छूट की सीमा बढ़ाने की काफी समय से मांग हो रही है। केंद्र के जवाब से यह भी साफ होगा कि इनकम टैक्स पर उसका आगे का रुख क्या रहने वाला है।