लखनऊ। विधानसभा चुनाव संपन्न हो गए। 10 मार्च को नतीजे आ जाएंगे। पर, कर्मचारी बेचैन हैं। उन्हें आशंका है कि जिस तरह उनके बड़े समूह ने सत्ताधारी दल के खिलाफ मोर्चा खोला है, अगर सपा न जीती और भाजपा फिर सत्ता में आई तो क्या होगा? क्या वह मुखर विरोध करने वालों के खिलाफ विरोधी वाला रवैया अपनाएगी? या कर्मचारियों से जुड़े मुद्दों के समाधान का कोई रास्ता निकालेगी। कर्मचारियों का कहना है कि जो भी सरकार सत्ता में आए उसे कर्मचारियों के मुद्दों का प्रमुखता से समाधान करना चाहिए।
प्रदेश में करीब 21 लाख कर्मचारी हैं। इनमें करीब 16 लाख नियमित हैं और करीब 5 लाख आउटसोर्सिंग पर नियुक्त हैं। पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा लंबे समय से कर्मचारियों के एजेंडे में रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी कर्मचारियों ने इसे बड़े स्तर पर उठाया था। पर, तत्कालीन मुख्य सचिव अनूप चंद्र पांडेय ने केंद्र की तरह नई पेंशन में सरकार का अंशदान बढ़ाकर 10 से 14प्रतिशत करवा दिया था। नई पेंशन में सरकार के हिस्से का करीब 10 हजार करोड़ रुपये जो पिछली सरकारों ने जमा नहीं कराया था, उसे सरकारी खजाने से जमा करवा दिया। साथ ही कर्मचारियों की नई पेंशन से जुड़ी आशंकाओं अन्य मुद्दों पर विचार कर तार्किक समाधान का सुझाव देने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन कर किया था। इसके बाद कर्मचारी शांत हो गए थे। पर, चुनाव बीता, समिति का काम ठंडे बस्ते में चला गया। शासन स्तर पर आउटसोर्सिंग भर्तियों के समर्थक व नियमित कर्मचारी विरोधी छवि वाले कई कोशिश की। ताकतवर अफसरों ने ताबड़तोड़ कर्मचारी विरोधी कार्यवाही शुरू कर दी। सरकार ने कई कर्मचारी संवर्गों की समस्याओं के समाधान की जगह कर्मचारी नेताओं के खिलाफ बर्खास्तगी जैसी कड़ी कार्रवाई की। सपा ने मौके की नजाकत को समझा और पुरानी पेंशन बहाली का वादा अपने घोषणापत्र में शामिल कर कर्मचारियों को लामबंद करने की
नतीजा ये हुआ कि विधानसभा चुनाव आते-आते कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली को लेकर भाजपा सरकार के खिलाफ लामबंद हो गए।
इन वजहों से सरकार से नाराज हुए कर्मचारी
वर्ष 2019 में कार्मिक विभाग ने सरकारी नौकरी को लेकर एक नया प्रस्ताव बनाया। इसमें समूह ‘ख’ व ‘ग’ की सरकारी नौकरी की शुरुआत पांच वर्ष की संविदा सेवा से करने की बात कही गई। कई ऐसी शर्तें जोड़ी गई जिसने युवाओं में आक्रोश भर दिया। ‘अमर उजाला’ ने इस प्रस्ताव का खुलासा किया तो सरकार ने इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया। आक्रोश इतना था कि पीएम मोदी के जन्मदिन पर युवाओं ने थाली मार्च निकाल दिया। बैकफुट पर आई सरकार को लंबे समय से ठप पड़ी शिक्षक भर्ती व अन्य चयन व भर्ती आयोगों की भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ाकर आक्रोश ठंडे करने के रास्ते पर आना पड़ा।