बच्चों को पढ़ाने के बाद पकौड़े बेच रहे अनुदेशक, 9 साल से स्कूलों में पढ़ा रहे अनुदेशकों की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल

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ज्ञानपुर। पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में 2013 से कार्यरत अंशकालिक अनुदेशकों की आर्थिक स्थिति काफी खराब है। आलम यह है कि जीवकोपार्जन के लिए स्कूल से छूटने के बाद कोई सब्जी बेचता है तो कोई पकौड़े बेच रहा है। कुछ अनुदेशकों ने तो ठेके पर राजगीर का भी काम शुरू कर दिया है।


वैसे देखा जाय तो अनुदेशकों का मानदेय सात हजार से बढ़ाकर नौ हजार रुपये किया गया था, लेकिन इनके लिए इस महंगाई में परिवार चलाना कठिन हो रहा है। जिसकी वजह से उन्हें अन्यत्र कार्य करने के लिए विवश होना पड़ रहा है। स्कूल से छूटने के बाद अतिरिक्त कमाई के लिए कोई अनुदेशक मोबाइल की दुकान या जनसेवा केंद्र पर बैठता है तो कोई निजी अस्पताल में काम करने को विवश हो रहा है।

पकौड़ा बेचकर चलाते हैं खर्च
अभोली ब्लॉक के मिश्राइनपुर निवासी राजनाथ केस-एक गुप्ता अनुदेशक हैं। माली हालत ठीक न होने से वे स्कूल से छूटने के बाद बाजार में पकौड़े का ठेला लगाते हैं। परिवार की जिम्मेदारी का बोझ इतना अधिक है कि स्कूल से पढ़ाकर लौटने के बाद वह प्रतिदिन दुकान लगाते हैं। बच्चों की परिवरिश के लिए अलग से यह करना पड़ता है। इससे उन्हें 200 से 250 रुपये प्रतिदिन मिल जाता है।

बच्चों की पढ़ाई के लिए अतिरिक्त काम
केस-दो
पूर्व माध्यमिक विद्यालय गंगापुर तलिया में अनुदेशक बच्चा लाल वर्मा के चार बच्चे हैं। परिवार संग बच्चों की पढ़ाई का खर्च अनुदेशक के मानदेय से पूरा नहीं हो पाता। इसके लिए स्कूल की छुट्टी के बाद वह राजगीर के कार्य में शटरिंग का कार्य ठेका पर लेकर करते हैं, क्योंकि दिहाड़ी में समय से आना पड़ेगा समय से जाना पड़ेगा। यहां मजबूरी है कि स्कूल में पढ़ाने के बाद ही वह कहीं जा सकते हैं। ऐसे कई अनुदेशक हैं जो शाम को सब्जी की दुकान लगाते हैं, जबकि कुछ सुबह दूध बेचकर स्कूल जाते हैं।

साल 2016-17 में अनुदेशकों का मानदेय 17 हजार हो गया था। केंद्र सरकार ने इसके लिए बजट भी जारी कर दिया था, लेकिन बाद में प्रदेश सरकार ने कटौती कर दी। नौ हजार के अल्प मानदेय में अनुदेशकों को घर चलाना मुश्किल होता है। जिससे दूसरे काम करने को मजबूर हैं।
दिलीप सिंह
जिलाध्यक्ष अनुदेशक संघ