विवशता: बच्चों को पढ़ाने के बाद ई-रिक्शा चला रहीं अनुदेशक सुनीता, तो कोई अनुदेशक बेंच रहा चाट-फुल्की

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बेसिक शिक्षा परिषद के उच्च प्राथमिक स्कूलों में 2013 से कार्यरत अंशकालिक अनुदेशकों की आर्थिक स्थिति खस्ता है। आलम यह है कि स्कूल से छूटने के बाद कोई ई-रिक्शा चलाता है तो कोई चाट-फुल्की का ठेला लगाने को विवश है। सरकार ने मई के अंत में प्रदेशभर के 27,555 अनुदेशकों का मानदेय सात हजार से बढ़ाकर नौ हजार रुपये किया था लेकिन इनके लिए इस महंगाई में परिवार चलाना कठिन हो रहा है। स्कूल से छूटने के बाद अतिरिक्त कमाई के लालच में कोई अनुदेशक मोबाइल की दुकान या जनसेवा केंद्र पर बैठता है तो कोई निजी अस्पताल में काम करता है।

स्कूल से छूटने के बाद बेचते हैं चाट उच्च प्राथमिक विद्यालय कोरांव में कला के अनुदेशक प्रदीप कुमार विश्वकर्मा की माली हालत भी ठीक नहीं है। स्कूल से छूटने के बाद वह गांव में और कभी बाजार में चाट-फुल्की का ठेला लगाते हैं। उनके चार बच्चे प्राथमिक विद्यालय कोसफरा कला कोरांव में पढ़ते हैं। माता-पिता की जिम्मेदारी उठाने के साथ ही प्रदीप को बहन की शादी भी करनी है। लिहाजा स्कूल से आने के बाद शाम को चाट-फुल्की का ठेला लगा लेते हैं। इससे उन्हें प्रतिदिन 200-250 रुपये मिल जाते हैं।

नौ हजार रुपये में नहीं हो रहा परिवार का गुजाराउच्च प्राथमिक विद्यालय बलापुर चाका की कला अनुदेशक सुनीतालता बच्चों को पढ़ाने के बाद ई-रिक्शा चलाती हैं। पति धीरेन्द्र कुमार कुछ समय पहले तक कपड़े की दुकान पर सात हजार रुपये महीने पर काम करते थे। दो बच्चों की पढ़ाई, मां-पिता की जिम्मेदारी उठाना मुश्किल होने लगा तो एलआईसी बांड पर एक लाख लोन, कुछ रुपये परिचितों से उधार लेकर और कुछ बचत का लगाकर 1.75 लाख रुपये में ई-रिक्शा खरीद लिया। धूप से एलर्जी होने के कारण धीरेन्द्र सूरज ढलने के बाद ई-रिक्शा चलाते हैं। जबकि सुनीता स्कूल से आने के बाद दो-तीन घंटे गाड़ी चलाती हैं। दोनों मिलकर प्रतिदिन 400 से 450 रुपये तक कमा ले रहे हैं।

प्रदेश सरकार ने 2017 में मानदेय 17 हजार रुपये प्रतिमाह करने का निर्णय लिया था। केंद्र सरकार ने बजट भी जारी कर दिया था लेकिन बाद में राज्य सरकार ने प्रस्ताव खारिज कर दिया। मानेदय 17 हजार करने को लेकर अनुदेशकों ने हाईकोर्ट में याचिका भी की थी जो विचाराधीन है।-भोलानाथ पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष, उच्च प्राथमिक अनुदेशक कल्याण समिति